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ढौरी कौन लागी ढुरि जैबे की सिगरो दिन / आलम

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ढौरी कौन लागी ढुरि जैबे की सिगरो दिन,
                 छिनु न रहत घरै कहों का कन्हैया कों ।
पल न परत कल विकल जसोदा मैया,
                 ठौर भूले जैसे तलबेली लगै गैया कों ।
आँचर सों मुख पोंछि-पोंछि कै कहति तुम,
                 ऐसे कैसे जान देत कहूँ छोटे भैया कों ।
खेलन ललन कहूँ गए हैं अकेले नेंकु,
                 बोलि दीजै बलन बलैया लाग मैया कों ।