Last modified on 31 जनवरी 2014, at 10:56

तइयारी / लक्ष्मीकान्त मुकुल

उगरह ना होखल रहे अबे चान
तबो बलुक बरले रहे
जोन्हिया आपन दियरी
ओह करिया रात में
सभे पुंग लेले रहे
अपना काम ले

आइल हमरा मन में
घूमि आई खेत-बधारिन से
देखि आई जनेरा के खेत
सुनि आई पउधन के बतकही

कूदत जा रहे हमार गोइ
मेड़िन के लीख धइले
तले थथम गइलीं हम
केने दो ले बहल आवत
अवँज के सुनि के

बुझाइल जे
अगिया-बैताल मतिन
बतकूचन करत मनई
हेरवा देले होखस जइसे
गगरी अपना उमिदन के

खलबला गइलीसन्
फेंड़न पर के झँपात चिरई
आ गरमा गइल रहे गाँव

भकुवइले हम
बढ़त गइलीं सीवान ओरे
जनाय जइसे तइयार होखसन्
खेतन के जिरात
चले बदे
ओने घहरात रहे बदरी
चूबे लागल रहे आसमान