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तकदीरां री बातां अै / अशोक जोशी 'क्रान्त'

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तकदीरां री बातां अै
बिण साजण री रातां अै।

वांरै आंगण रोज बिलोणौ
इण घर फगत परातां अै।

सुपना देखा सोनल रा
बस ओळूं री ख्यातां अै।

कीकर जीव पतीजैला
न्यारी-न्यारी न्यातां अै।

सोच-समझ नै पग धरजै
धोळै दिन री घातां अै।

म्हैल घणा ई चौखा है
चूवै घर री छातां अै।