भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तड़पि रहल माछ जल बिल / नरेश कुमार विकल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:07, 23 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश कुमार विकल |संग्रह=अरिपन / नर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
काटि रहल छी राति-दिन।
तड़पि रहल माछ जल बिन।
ककरो ने तृप्ति आर हास
आनन पर अश्रु आ‘ उदास
कंचन आ कामिनीक कोर
पूरित अतृप्ति आर प्यास
आंगुर पर एक-दू-तीन।
तड़पि रहल माछ जल बिन।
आंगन मे प्रश्नक गाछ
कोन झूठ आर कोन सांच
काटि-काटि तीरा गुलाब
रोपि रहल छी आगु-पाछ
अजगुत भेल आब निन्न।
तड़पि रहल माछ जल बिन।
पाथर सन जिनगी कठोर
स्याह भेल लाल तिलकोर
आशा निराशाक मांझ
तानल छै पातर डोर
बुझि रहलि छी निज कें हीन।
तड़पि रहल माछ जल बिन।