भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तड़फड़ाट / राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आखौ स्हैर भाजै
मोटर-गाडी दांई
अज्यासा मिनखां री
हाणचूक भाजादौड़
जांणै खिंडाग्यौ
कुण-ई कीड़ी-नगरौ।
रोळौ-बैधौ आथमज्या
सड़कां ई सुस्तावै
मोटर-गाड्यां थाकज्या
जीव-जिनावर ई जा बड़ै
खोह-खोळी मांय।

पण जका कुरळावै
अणजांणी पीड़ संू
अेक अणजोगती
मांयली सून्याड़ सूं
वै कमरै मांय ढक्यौड़ा
ऊभज्या टेबल माथै।

स्यापै मांय अेकला ई करै
आखी रात बंतळ
बणावै मींत अणगिणत
ओलै-छानैं करै सगपण
रचावै कड़ूंबौ
घड़ै नुवीं स्रिस्टी
आपरै कड़ूंबै सूं
कोसां आतरै।

विलम जुड़ाव रौ
अणजांण सूं साथीपौ
घ्यार बतळास रौ
उजासणै री तड़फड़ाट
रळनै री खेचळ
अणथकी लीला।

धरणी नीं थमै
फेरूं वा ई आकळ
आंख्या सांम्ही जगमगाट
भीतर अंधार।