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तन्हाई ने वो रक़्स ओ तमाशा किया कि वाह / रिंकी सिंह 'साहिबा'

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तन्हाई ने वह रक़्स ओ तमाशा किया कि वाह,
ऐसा जहाँ में इश्क़ ने रुसवा किया कि वाह।

दुश्मन भी मेरी ख़ाक ए क़दम चूम कर गए,
ऐसी अना से मैंने गुज़ारा किया कि वाह।

उसकी जफ़ा को मैंने यूँ बख़्शीं बुलंदियाँ,
उसको बना के देवता सजदा किया कि वाह।

गिर्दाब ए वक़्त में मेरी कश्ती को देखकर,
अपनो ने मुस्कुरा के किनारा किया कि वाह।

ज़ख़्मों के हर भंवर में उभर आई कहकशां
इक चारागर ने ऐसा मुदावा किया कि वाह।

अश्कों ने वह दिखाए कमालात इश्क़ में,
दीवार ओ दर को ख़ूबरू सब्ज़ा किया कि वाह।

खुलने दिया न रंज का कोई भी मुद्दआ,
ऐसी अदा से इश्क़ का शिकवा किया कि वाह।

वो ख़ुशबुओं की मौज है फूलों की है अदा,
ऐसे मेरे नफ़स में बसेरा किया कि वाह।

देगा मिसाल वक़्त भी उसके कमाल की,
यूँ 'साहिबा' ने दश्त को दरिया किया कि वाह।