भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तपतै धोरां रा दिन रात अर सरणाटो / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तपतै धोरां रा दिन रात अर सरणाटो
खुद सुं खुद ई करो बात अर सरणाटो

तिरछी आंख नापै आभै रो खुणो-खुणो
उडती चिड़ी सागै घात अर सरणाटो

पतियारो रै पगां में होयो पोलियो
अपणायत री आड़ मात अर सरणाटो

बळता पग सूखतो गळो सांमै पाणी
आडी ऊभी देखो जात अर सरणाटो

पोखण रै नांव ऐ तो रोसै जुगां सूं
सांसां माथै अदीठ लात अर सरणाटो