Last modified on 14 नवम्बर 2009, at 21:21

तबीअत से फ़रो-माया की शे’रे-तर नहीं होता / सौदा

तबीअत से फ़रो-माया की शे’रे-तर नहीं होता
जो आबे-चाह का क़तरा है वो गौहर नहीं होता
तलाशे-ख़िज़्र बहरे-मंज़िले-मक़सूद न कर ’सौदा’
कोई ख़ुदरफ़्तगी से राहबर बेहतर नहीं होता