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तब अधर पर गीत आते / अभिषेक औदिच्य

जब किसी के नेह में हम हार कर भी जीत जाते।
तब अधर पर गीत आते।

पुष्प पर जब ओस के संघात से मृदु चोट आए,
जब हमारी टेर की ही एक प्रतिध्वनि लौट आए।
जब किसी बेला के बिरबे पर अचानक फूल आता,
जब कोई उल्लास में है साँस लेना भूल जाता।

जब किसी प्रिय आगमन का हम कभी संकेत पाते।
तब अधर पर गीत आते।

जब हमारे इंगितों पर केश कोई मुक्त कर दे,
और यह रसहीन जीवन प्रेम से रसयुक्त कर दे।
खनखनाते हाथ जब भी कक्ष का हैं द्वार खोलें,
कँपकँपाते होंठ दो जब-जब हमारा नाम बोलें।

जब महावर से भरे दो पाँव हैं पायल बजाते।
तब अधर पर गीत आते।