Last modified on 28 मई 2014, at 22:05

तब जब सब कुछ बिकता है / राजेन्द्र गौतम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:05, 28 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र गौतम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तब जब सब कुछ बिकता है
बेटा कविता लिखता है

चूल्हे में सपने झोंके
रोटी-सा ख़ुद सिकता है

दिन भी ठोकर खाता है
इसको भी कम दिखता है

हाथ रचेंगे बिटिया के
वह मेहँदी-सा पिसता है

घाव समय से कब भरता
घाव समय-सा रिसता है