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तब सूरज डूब रहा था जब तुझसे मैं मिला था / अलेक्सान्दर ब्लोक / अनिल जनविजय

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तब सूरज डूब रहा था जब तुझसे मैं मिला था
तूने बड़े मजे में उस खाड़ी को पार किया था
सफ़ेद फ़्रॉक में थी तू, रूप तेरा खिला-खिला था
पर सपना टूट चुका था कि हमने प्यार किया था

हम दोनों चुप रहते थे, जब होती थीं मुलाक़ातें
रेतीली ढलान पर बैठे, करते नहीं थे कुछ बातें
फिर शाम गुज़र जाती थी, होती थी दीया-बाती
देख पीली शक़्ल वो तेरी, धड़के थी मेरी छाती

तेरी नज़दीकी पाकर, तब मन मेरा दहके-दहके
नीलवर्णी मौन वो तेरा औ’ मन मेरा लहके-लहके
धुन्धली उन शामों में, जब मुलाक़ात हमारी होती
सागर जल की लहरें, जहाँ  सरकण्डों को धोतीं

ना तड़प उठी थी मन में, ना प्रेम था कोई ना रोष
बीत चुका था प्यार, फीका हो गया मन का जोश
सफ़ेद कोहरा-सा फैल गया, था रुदन सुनाई देता
नाव हमारी बह गई, तेरा सोन-चप्पू जिसे था खेता

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए अब मूल रूसी में वही कविता पढ़िए
                               Александр Блок
                 Мы встречались с тобой на закате

Мы встречались с тобой на закате.
Ты веслом рассекала залив.
Я любил твое белое платье,
Утонченность мечты разлюбив.

Были странны безмолвные встречи.
Впереди — на песчаной косе
Загорались вечерние свечи.
Кто-то думал о бледной красе.

Приближений, сближений, сгораний —
Не приемлет лазурная тишь…
Мы встречались в вечернем тумане,
Где у берега рябь и камыш.

Ни тоски, ни любви, ни обиды,
Всё померкло, прошло, отошло..
Белый стан, голоса панихиды
И твое золотое весло.