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"तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर

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तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था
 
तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था

22:50, 15 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण

तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था
पता नहीं वो दीए क्यूँ बुझा के रखता था

बुरे दिनों के लिए तुमने गुल्लक्कें भर लीं,
मै दोस्तों की दुआएँ बचा के रखता था

वो तितलियों को सिखाता था व्याकरण यारों-
इसी बहाने गुलों को डरा के रखता था

न जाने कौन चला आए वक़्त का मारा,
कि मैं किवाड़ से सांकल हटा के रखता था

हमेशा बात वो करता था घर बनाने की
मगर मचान का नक़्शा छुपा के रखता था

मेरे फिसलने का कारण भी है यही शायद,
कि हर कदम मैं बहुत आज़मा के रखता था