भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= ज्ञान प्रकाश विवेक }} Category:ग़ज़ल <poem> तमाम घर को ...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | | रचनाकार= ज्ञान प्रकाश विवेक | + | |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक |
− | }} | + | |संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है / ज्ञान प्रकाश विवेक |
− | [[Category:ग़ज़ल]] | + | }} |
+ | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
<poem> | <poem> | ||
तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था | तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था |
22:50, 15 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था
पता नहीं वो दीए क्यूँ बुझा के रखता था
बुरे दिनों के लिए तुमने गुल्लक्कें भर लीं,
मै दोस्तों की दुआएँ बचा के रखता था
वो तितलियों को सिखाता था व्याकरण यारों-
इसी बहाने गुलों को डरा के रखता था
न जाने कौन चला आए वक़्त का मारा,
कि मैं किवाड़ से सांकल हटा के रखता था
हमेशा बात वो करता था घर बनाने की
मगर मचान का नक़्शा छुपा के रखता था
मेरे फिसलने का कारण भी है यही शायद,
कि हर कदम मैं बहुत आज़मा के रखता था