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तमाम शब् जहाँ जलता है इक उदास दिया / मोहसिन नक़वी

तमाम शब् जहाँ जलता है इक उदास दिया
हवा की राहों में इक ऐसा घर भी आता है

वो मुझे टूट के चाहेगा, छोड़ जायेगा
मुझे खबर थी उसे ये हुनर भी आता है

वफ़ा की कौन सी मंजिल पे छोड़ा है उस ने
के वो याद हमें भूल कर भी आता है

इसीलिए मैं किसी शब् न सो सका “मोहसिन”
वो माहताब कभी बाम पर भी तो आता है