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तरुनाई आगम ऋतु बरनन / रसलीन

आवत बसत तरुनाई तरु तरुनी के,
बात गात अरुनाई दौरत पुनीत है।
बिकसैं सुमन मन सफल उरोज होत
भवन भँवर मन राख रस प्रीत है।
घोरो कंठ भास बास अंग अंग कै सुबास
परम प्रकास कर लेत प्रान जीत है।
रति बीस किये तें न भावैं रसलीन दोऊ
जोबन की रीति सोई जो बन की रीति है॥70॥