Last modified on 12 अक्टूबर 2016, at 03:31

तसव्वुर का नशा गहरा हुआ है / महावीर उत्तरांचली

तसव्वुर का नशा गहरा हुआ है
दिवाना बिन पिए ही झूमता है

गुज़र अब साथ भी मुमकिन कहाँ था
मैं उसको वो मुझे पहचानता है

गिरी बिजली नशेमन पर हमारे
न रोया कोई कैसा हादिसा है

बलन्दी नाचती है सर पे चढ़के
कहाँ वो मेरी जानिब देखता है

जिसे कल ग़ैर समझे थे वही अब
रगे-जां में हमारी आ बसा है