Last modified on 28 मई 2012, at 09:38

ताँका 51-60 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'


51
बातें भी नहीं
न मुलाक़ात हुई
यही जीवन
नफ़रत ढोना है
शूलों का बिछौना है
52
बिखरी रेत
चिड़िया है नहाए
मेघ भी देखे
चिड़िया यूँ माँगे है
सबके लिए पानी
53
बूँदों का झूला
बादल ने है बाँधा
भीगी धरती
छमछम पायल
बजती बरखा की
54
बिजली हँसी
घनकेश बिखेरे
झपकी आँखें
हुई विभोर धरा
पात नहाए धुले
55
बैठ झरोखे
गौरैया ये निहारे
कितना पानी
नीड़ गिरा आँधी से
खो गए कहीं बच्चे
56
घाटी नहाए
झमाझम वर्षा में
टप्-टप् टिप के
साज बजाते पत्ते
सन्नाटा टूट गया
57
प्रार्थनारत
प्यारी बेटी के लिए
जलाना प्रभु
खुशियों के ही दिये
उसके द्वारे पर
58
झूले की पेंगे
अम्बर को छू लेती
खुशबू-भरा
जीवन- रस-भीगा
लहराता आँचल
59
सन्देसा लाया
जीभर लहराया
रुका पवन
छुपा है आँचल में
छू लेने को पल में
60
रह-रहके
गीतों में दर्द घुला
आया छनके
सुधियों को छूकर
जादू-मंत्र बनके ।
-0-