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ताक़त-ए-गुफ़्तार हो तो कुछ बयाँ हम भी करें / बेगम रज़िया हलीम जंग

ताक़त-ए-गुफ़्तार हो तो कुछ बयाँ हम भी करें
लफ़्ज़ कुछ माबूद की तौसीफ़ में हम भी कहें

इस बहाने हम को मिल जाएगा ख़ुशयों का सुरूर
अपनी साँसों की ऐ आक़ा बख़्श दो ख़ुशबू हमें

इस ज़बाँ पर ज़िक्र तेरा गोश में हो तेरा नाम
तेरी ही बातें करें हम तेरी ही बातें सुनें

तू है यकता तू अकेला ज़ात है तन्हा तेरी
जब नहीं सानी तेरा तो कैसे तश्बीहें मिलें