भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ताकि सिलसिला जारी रहे / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:59, 18 नवम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उज्ज्वल भट्टाचार्य |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धीरे-धीरे 
बिना रुके 
ऊपर से 
ख़ाली होती जाती है 
रेतघड़ी । 

सबकी नज़रों में 
रहता है 
उसका ख़ाली होना 
और वे नहीं देखते 
नीचे से वह 
भरती जा रही है ।

देर या सबेर 
आएगा 
वह लमहा 
ऊपर जब 
ख़ाली होने को 
कुछ भी न बचेगा 
और इतिहास का कठोर हाथ 
उसे पलट देगा 

ताकि 
सिलसिला जारी रहे ।