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ताकि सिलसिला जारी रहे / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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धीरे-धीरे 
बिना रुके 
ऊपर से 
ख़ाली होती जाती है 
रेतघड़ी । 

सबकी नज़रों में 
रहता है 
उसका ख़ाली होना 
और वे नहीं देखते 
नीचे से वह 
भरती जा रही है ।

देर या सबेर 
आएगा 
वह लमहा 
ऊपर जब 
ख़ाली होने को 
कुछ भी न बचेगा 
और इतिहास का कठोर हाथ 
उसे पलट देगा 

ताकि 
सिलसिला जारी रहे ।