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ताजी-ताज़ी जूनी रात / सुदेश कुमार मेहर

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ताजी-ताज़ी जूनी रात
थी कितनी बातूनी रात

उसकी बातें छू जाती हैं,
जाड़ों की वो ऊनी रात

चंदा तारे तकिया यादें,
क्यूँ है इतनी सूनी रात

यादों की दहरी से झांके,
हर सूं फैली धूनी रात

उसकी बातों में अटकी है,
हो जाए अब दूनी रात