भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ताननि की ताननि मही / नागरीदास

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 24 दिसम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ताननि की ताननि मही, परयौजुमन धुकि धाहिं।
पैठयो रव गावत स्त्रवनि, मुख तैं निसरत आहि॥

मुख तैं निसरत आहि! साहि नहिं सकत चोट चित।
ज्ञान हरद तैं दरद मिटत नहिं, बिबस लुटत छित॥

रीझ रोग रगमग्यौ पग्यौ, नहिं छूटत प्राननि।
चित चरननि क्यौं छुटैं, प्रेम वारेन की ताननि॥