"तारा आखिरी पहर का(मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | चैन कभी इस दुनिया में उसको मिलना है मुश्किल | ||
+ | औरों का रो देना जिसको ठण्डक पहुँचाता है । | ||
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+ | किसी दिन मिटेगा अँधेरा सोच लो | ||
+ | कभी तो सजेगा सवेरा सोच लो । | ||
+ | उजड़ा है माना नीड आँधियों में | ||
+ | बनेगा किसी दिन बसेरा सोच लो। | ||
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+ | मत समझो कि मैं मगरूर हूँ, | ||
+ | वक्त के हाथों मजबूर हूँ । | ||
+ | दिल में तुम्हारे बसा हूँ मैं | ||
+ | समझो नहीं कि बहुत दूर हूँ। | ||
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+ | टूटी है नौका दरिया है गहरा | ||
+ | अंतिम हैं साँसें ऊपर है पहरा । | ||
+ | जुबाँ भी कटी है कैसे मैं बोलूँ | ||
+ | अंधे मोड़ पर यह वक़्त है ठहरा । | ||
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+ | सदा पास तुमको पाया है मैंने | ||
+ | दर्द ज्यों दिल में छुपाया है मैंने । | ||
+ | मुझे माफ़ करना आज मीत मेरे | ||
+ | तुमको बहुत ही सताया है मैंने । | ||
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+ | झुलसा हूँ मैं कि तुझे आँच न आए | ||
+ | कोई तेरे मन को चोट न पहुँचाए । | ||
+ | मैं ठहरा तारा आखिरी पहर का | ||
+ | कौन जाने भोर कभी देख पाए। | ||
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21:58, 31 मार्च 2019 का अवतरण
1
औरों को दुख देकरके जो हरदम मुस्काता है
खुद जलकरके जो औरों के घर झुलसाता है ।
चैन कभी इस दुनिया में उसको मिलना है मुश्किल
औरों का रो देना जिसको ठण्डक पहुँचाता है ।
2
किसी दिन मिटेगा अँधेरा सोच लो
कभी तो सजेगा सवेरा सोच लो ।
उजड़ा है माना नीड आँधियों में
बनेगा किसी दिन बसेरा सोच लो।
3
मत समझो कि मैं मगरूर हूँ,
वक्त के हाथों मजबूर हूँ ।
दिल में तुम्हारे बसा हूँ मैं
समझो नहीं कि बहुत दूर हूँ।
4
टूटी है नौका दरिया है गहरा
अंतिम हैं साँसें ऊपर है पहरा ।
जुबाँ भी कटी है कैसे मैं बोलूँ
अंधे मोड़ पर यह वक़्त है ठहरा ।
5
सदा पास तुमको पाया है मैंने
दर्द ज्यों दिल में छुपाया है मैंने ।
मुझे माफ़ करना आज मीत मेरे
तुमको बहुत ही सताया है मैंने ।
6
झुलसा हूँ मैं कि तुझे आँच न आए
कोई तेरे मन को चोट न पहुँचाए ।
मैं ठहरा तारा आखिरी पहर का
कौन जाने भोर कभी देख पाए।