भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तारा विना श्याम मने एकलडु लागे / गुजराती लोक गरबा

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:58, 18 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तारा विना श्याम मने एकलडु लागे

रास रमवा ने वहलो आवजे....

तारा विना श्याम एकलडु लागे...


शरद पूनम नी रातडी ओह ओह

चांदनी खिली छे भली भांत नी

तू न आवे तो श्याम रास जामे न श्याम

रास रमवा ने वहलो आव आव श्याम....

श्याम श्याम.....


तारा विना श्याम मने एकलडु लागे

रास रमवा ने वहलो आवजे....

तारा विना श्याम एकलडु लागे...


अंग अंग रंग से अनंग नो

रंग केम जाए तारा संग नो

पायल झंकार सुनी रोदिया नो नाद सुनी

रास रमवा ने वहलो आव आव श्याम


तारा विना श्याम मने एकलडु लागे

रास रमवा ने वहलो आवजे....

तारा विना श्याम एकलडु लागे...


गरबे घुमती गोपियो सुनी छे गोकुल नी शेरीयो

सुनी सुनी शेरियो मां गोकुल नी गलियों मां

रास रमवा ने वहलो आव आव श्याम....


तारा विना श्याम एकलडु लागे

रास रमवा ने वहलो आवजे....

तारा विना श्याम एकलडु लागे ...