Last modified on 29 अक्टूबर 2019, at 18:42

तारीख़ गवाही दे कि आज़ाद हुए हम / हरिराज सिंह 'नूर'

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:42, 29 अक्टूबर 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तारीख़ गवाही दे कि आज़ाद हुए हम।
नदियों के किनारों पे ही आबाद हुए हम।

अपनों के लिए सख़्त हुए ज़ीस्त में अपनी,
दुश्मन के लिए और भी फ़ौलाद हुए हम।

वो दिन भी हमें याद बँटा मुल्क हमारा,
कहने को नहीं कुछ भी कि बर्बाद हुए हम।
 
दीवार ने मज़हब की ग़ज़ब हम पे वो ढाया,
ख़ुशहाल भी होते हुए नाशाद हुए हम।

इस तरह लुटे हम कि ज़ुबां खोल न पाए,
ये बात अलग ‘नूर’ कि फ़रियाद हुए हम।