http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87_%E0%A4%94%E0%A4%B0_%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81_/_%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80&feed=atom&action=historyताले और चाबियाँ / रजनी अनुरागी - अवतरण इतिहास2024-03-28T22:53:21Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87_%E0%A4%94%E0%A4%B0_%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81_/_%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80&diff=128745&oldid=prevDr. ashok shukla: नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रजनी अनुरागी |संग्रह= बिना किसी भूमिका के }} <Poem> …2011-09-17T07:30:25Z<p>नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रजनी अनुरागी |संग्रह= बिना किसी भूमिका के }} <Poem> …</p>
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{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार= रजनी अनुरागी<br />
|संग्रह= बिना किसी भूमिका के<br />
}}<br />
<Poem><br />
ताले बहुत हैं<br />
मगर चाबियाँ कहाँ हैं<br />
जिनसे उन्हें खोला जा सके <br />
पुरुष ने बनाए बहुत से ताले<br />
औरत के लिए<br />
और चाबियां छुपा दी <br />
<br />
कितनी ही सदियां गुज़र गई हैं<br />
औरत को चाबियां खोजते <br />
और पुरुष को उस पर हंसते<br />
<br />
मगर औरत भी कम नहीं है<br />
जिस ताले की मिली नहीं उसे चाबी<br />
वह खुद उसकी चाबी बन गई<br />
और इस तरह पुरुष के हर ताले को<br />
औरत खोलती आई है सदियों से<br />
अपनी ही तरह से<br />
<br />
लाज़िम है उस दिन का आना<br />
जब दुनिया के हर ताले की चाबी <br />
औरत के पास होगी<br />
मगर तब नहीं रहेगी जरुरत<br />
दुनिया में किसी भी ताले की<br />
</poem></div>Dr. ashok shukla