भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तितलियाँ हैं यादें / अर्चना भैंसारे

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:51, 3 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना भैंसारे |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूल-सी खिल जाती देह
तो फुदकने लगती यादें
बिछ जाता चेहरे पर बसन्त
भर जाती मोहक गंध
छलक उठता राग-रंग पोर-पोर से
तितलियाँ ही तो होती हैं यादें
प्रकृति के हज़ारों रूप
अपने पंखों में समेट कर
घूमती मन के ओर-छोर
हथेली पर उतरती धूप-सी भर जाती
स्‍मृति की देह में

संचित करती जीवन का आनंद अपने भीतर
सुखद पलों का वंशानुकरण करतीं
दौडती फूल-फूल
यादें फुदकती हैं, महकती हैं, घूमती हैं, दौड़ती हैं
तितलियां हैं यादें