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तितलियाँ / रचना उनियाल

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ज़िन्दगी में ख़ूब गुलशन को सजातीं तितलियाँ,
झूमती हैं नाचती हैं खिलखिलातीं तितलियाँ।

धूप हो बरसात हो खिलती बहारें बाग़ में,
हाल कोई भी सदा ख़ुशियाँ मनातीं तितलियाँ।

प्यार से रखना इन्हें तुम ज़िन्दगी मिलती ज़रा,
सीख देती ज़िन्दगी में डूब जातीं तितलियाँ।

ये हमारा है गुलिस्ताँ इश्क़ करना लाज़मी,
टूटता जब शाख़ से गुल जार रोतीं तितलियाँ।

लिख रही ‘रचना’ जहाँ में आशिक़ी की दासताँ,
बागबाँ की हर मुहब्बत को जतातीं तितलियाँ।