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तिल तिल छीज रहा / सांवर दइया

अपने उन्माद में डूबी
बांसों उछलती लहरों को
   मचल-मचल जाते देख

और भी सिहर-सिहर उठता हूं
पहले से ही भयभीत मैं
कहां तक टिक पाऊंगा
नित्य तिल-तिल छीज रहा
नोक –भर टिका-जुड़ा पुराना किनारा !

बांसों उछलती लहरों को देख
सिहर-सिहर उठता हूं मैं !