Last modified on 13 जनवरी 2019, at 07:29

तिश्नगी धूप है, उजाला है / रवि सिन्हा

तिश्नगी<ref>प्यास, लालसा (thirst, longing)</ref> धूप है, उजाला है
रूह ने तीरगी<ref>अँधेरा (darkness)</ref> में पाला है

हाफ़िज़े<ref>स्मरण शक्ति (memory)</ref> की तहों से फिर मैंने
आज बाहर उन्हें निकाला है

आरज़ी<ref>क्षणिक (temporary)</ref> है वजूद मेरा भी
तू भी तारीख़ का निवाला है

रौशनी रात की चहेती है
दिन ने सूरज को आज टाला है

वो जो सूराख़ आसमाँ में है
गिर्द उसके भी एक हाला<ref>आभामंडल (halo)</ref> है

ख़ुल्द<ref>स्वर्ग (heaven)</ref> के ख़्वाब ख़ल्क़<ref>लोग, सृष्टि (people, creation)</ref> के इम्काँ<ref>संभावना (possibility, potential)</ref>
हमने इक नज़रिये में ढाला है

बहर<ref>छंद (meter in poetry)</ref> में एक सुगबुगाहट है
क़ाफ़िये<ref>तुकांत (rhyme)</ref> ने मोरचा सँभाला है

शब्दार्थ
<references/>