Last modified on 21 अक्टूबर 2013, at 15:15

तीन मुट्ठी चावल लेकर सुदामा को तारे / महेन्द्र मिश्र

तीन मुट्ठी चावल लेकर सुदामा को तारे,
चंदन लगवाया तो कुब्जा को सुधारा था।
बिदुर घर जाय बासी साग खायो जब,
तब ही तो उनको भ्रमजाल से उबारा था।
सबरी को तारो जो खिलाय रही बैर उसने,
अवध बिहारी यह शान क्या तुम्हारा था।
हमरा ख्याल करो बिना घूस मुफुत ही में
हमको जो तारिहें तो ही जानिहों कि तारा था।