Last modified on 7 जून 2010, at 02:26

तीर्थम्‌ / सुशील राकेश

तीन बजे पहुंचे मैरिन ड्राइव
हमारे पैरों की आहट के साथ बढ़ती सहधर्मिणी
फुदकती हुई छोटी गुडिया
माचिस की तीली-सा छोटा बेटा
पंखों पर हुलकता हुआ आशुतोष
जो लाल सिगनल पर ठहरता नहीं
हरे सिगनल पर बेखबर होता हुआ
हम सब के बीच मैरिन ड्राइव पर है
पूरी अगूंठे की अडियल सेना.
समुद्र के शान्त/निश्छ्ल/विकल तरंगों से
सूर्य की तंबायी चांदी-सी किरणें खेलती
प्रसन्न है
समुद्रीय जल का यह मैरिन ड्राइव तीर्थम्‌ है
जहां सूर्य और समुद्र मिलते हुए एक राशि के हैं
समुद्र-बालुका में डूबा किनारा
ऊंचा किनारा
जल के वास्तविक विस्तार से ऊपर
लपेटा मारती चंचल लहरें
टक्कर पर टक्कर देती
हमारी बरसती-मचलती
सेना को सराबोर करती हैं
समुद्र के प्राकृतिक ढेंकुल द्वारा फेंके जल से
नरमा-गरमा हो जाता है मन ।
समुद्र का यह हस्तकौशल अद्वैत सैलाब
सूखे अन्तस्तल की ताल-तलैया भर
देता है / गुज़र जाती खरी-मीठी यादें
पूरी अंगूठे की अडि यल सेना पर।