भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तीर और तलवार / सूरजपाल चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोने की चिड़िया
उड़कर
न जाने कहाँ
चली गयी
दूध की बहती नदियाँ
और वो घाट
जहाँ शेर और बकरी
पीते थे
पानी एक साथ
ज़मीन में धँस गये!
राम और रहीम
सियासत में फँस गये।