भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुझको देख के जाने क्यूं / प्रताप सोमवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुझको देख के जाने क्यूं ये लगता है
तू वैसा ही है क्या जैसा दिखता है

रिश्ते नातों की ऊंची दुकानों पर
हाल-चाल का भी अब पैसा लगता है

भेष बदलने में वो काफी माहिर है
दिल की बस्ती में जो धोखा मिलता है

अच्छा है कुछ लोग बदल भी जाते हैं
थोड़ा-थोड़ा बोझ उतरता रहता है

इतनी अच्छी-अच्छी बातें मत कर तू
तेरे बराबर मेरा भी घर पड़ता है