भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुझे देखे तो चलना भूल जाए / राज़िक़ अंसारी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem>तुझे दे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
− | <poem>तुझे देखे तो , चलना भूल जाए | + | <poem> |
+ | तुझे देखे तो , चलना भूल जाए | ||
मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल जाए | मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल जाए | ||
06:58, 14 जून 2019 के समय का अवतरण
तुझे देखे तो , चलना भूल जाए
मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल जाए
अगर शायर तेरी आँखों में झांके
समंदर, झील , दरिया भूल जाए
सहारा है तेरी यादों का वरना
हमारा दिल धड़कना भूल जाए
करे जो क़ैस हम जैसी मशक़्क़त
तो सहरा में भटकना भूल जाए
अगर मैं खोल के रख दूं मेरा दिल
तू अपना दर्द , रोना भूल जाए