भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुझे देखे तो चलना भूल जाए / राज़िक़ अंसारी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:33, 27 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem>तुझे दे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुझे देखे तो , चलना भूल जाए
मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल जाए


अगर शायर तेरी आँखों में झांके
समंदर, झील , दरिया भूल जाए


सहारा है तेरी यादों का वरना
हमारा दिल धड़कना भूल जाए


करे जो क़ैस हम जैसी मशक़्क़त
तो सहरा में भटकना भूल जाए


अगर मैं खोल के रख दूं मेरा दिल
तू अपना दर्द , रोना भूल जाए