भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुझे भी चैन ने आए करार को तरसे / 'क़ैसर' निज़ामी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:06, 11 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='क़ैसर' निज़ामी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुझे भी चैन ने आए करार को तरसे
चमन में रह के चमन की बहार को तरसे

इलाही बर्क वो टूटे जमाल पर तेरे
कली की तरह से तू भी निखार को तरसे

तमाम उम्र रहे मेरा मुंतज़िर तू भी
तमाम उम्र मेरे इंतिज़ार को तरसे

न हो नसीब मोहब्बत की ज़िंदगी तुझ को
सुकून-ए-ज़ीस्त को ढूँढे क़रार को तरसे

दुआ है ‘कैसर’-ए-महजूर की यही पैहम
के तू भी जल्वा-ए-रूख़्सार-ए-यार को तरसे