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तुझ बिना दिल को बे-क़रारी है / 'फ़ायज़' देहलवी

तुझ बिना दिल को बे-क़रारी है
दम-ब-दम मुझ को आह ओ ज़ारी है

हाथ तेरे जो देखी है तलवार
आरजू दिल को जाँ-सिपारी है

मुझ को औरों से कुछ नहीं है काम
तुझ से हर दम उम्मीद-वारी है

हम से तुझ को नहीं मिलाप कभी
ये मगर जग में तौर-ए-यारी है

आह कूँ दिल में मैं छुपाता हूँ
लाज़िम-ए-इश्‍क पर्दा-दारी है

गिर रहा तेरी राह पर ‘फाएज़’
इश्‍क की शर्त ख़ाक-सारी है