भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमने मुझे रसप्लावित रखा / उर्मिल सत्यभूषण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह तुम थे कि मैं अंगारों
पर भी नाच सकी श्री कृष्ण
यूं कि जैसे फूलों की घाटी
पसरी हो पांवों तले
यह तुम्हें थे रसराज!
जिसने जीवन के गरल
को अपनी करुणाभ
दृष्टि से पीयूष बना
कर मेरे गले में उडेंला
जीवन के मरू में तुम्हारा
ही प्यारा बरसता रहा
भिगोता रहा
हां उसी ने, उसी ने मुझे
रस प्लावित रखा,
मेरी धरती को सूखने
से बचाये रखा।