तुमसा कोई कभी ना देखा।
जैसे मुद्रिका में नगीना देखा।
देख कर रूप तुम्हारा गोरी,
सूर्य के भाल पसीना देखा।
जब भी तुम नहा कर निकलो,
जून में सावन का महीना देखा।
जब भी जाता हूँ यार, मन्दिर में,
वहीं मक्का औ’ मदीना देखा।
क्या गजब की यार, लहरें थीं,
डूबता हुआ इक सफ़ीना देखा।