भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा चुंबन / सुशीला पुरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:37, 23 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला पुरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> तुम्हारा वह चुम…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारा वह चुम्बन
जिसमें घुली होती है
ईश्वर की आँख
जो झंकृत करती रहती है
अनवरत मेरे जीवन के तार
 
उनमें भीगा होता है
पूरा का पूरा समुद्र
पूनम के चाँद को समेटे
नहा लेती हूँ मै
अखंड आर्द्रता
चांदनी ओढ़ कर

वहाँ विहँसता है बचपन
और घुटनों के बल
सरकता है समय
अपनी ढेर सारी
निर्मल शताब्दियों के साथ

सहेज लेती हूँ मैं उसे
जैसे सहेजती है माँ
पृथ्वी की तरह गोल
अपनी कोख ।