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तुम्हारा चेहरा / रंजना जायसवाल

बार बार आँखों में
तिर आता है तुम्हारा चेहरा
हालाँकि समझा चुके हो तुम
दिल नहीं दिमाग से करना चहिए प्रेम
कि जिस समय कर रहे हों प्रेम
बस उतनी ही देर के लिए
ठीक होता है सोचना प्रेम के बारे में
जैसे खाने के समय खाना
सोने के समय सोना ठीक होता है
हर वक्त प्रेम में होना अच्छा नहीं
न वर्तमान के लिए न भविष्य के लिए
सच है तुम्हारा कहना भी
तेज रफ्तार में निरंतर भागता आदमी
कर भी कैसे सकता है इत्मीनान से प्रेम
सच यह भी है कि सारी बेइत्मीनानी के बावजूद
याद आता है मुझे प्रेम के इत्मीनान में डूबा
तुम्हारा चेहरा