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तुम्हारा दाँव / असंगघोष

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द्रोण!
गुरु दक्षिणा में
अपना अँगूठा काटकर देता
एकलव्य
तुम्हारी बूढ़ी आँखों में छाई
धूर्तता
और दाढ़ी मूँछों के पार्श्व में
छिपी कुटिल मुस्कान
देख नहीं पाया था

न ही दुर्योधन के
अहसान तले दबा
कर्ण!
अपने कुण्डल कवच
दान देने से पहले
कृष्ण!
तुम्हारी कूटनीति
समझ पाया था
परन्तु अब तुम दोनों सुनो!
तुम्हारे अनुयायी भी सुनें
न एकलव्य
न हम वो कर्ण रहे
अब हम भी
सीख चुके हैं
तुम्हारी चौसरी चालें,
चलो अपना दाटव
आओ! पासा फेंको?