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तुम्हारी आँख का आँसू चुरा लिया मैंने / मधुरिमा सिंह

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तुम्हारी आँख का आँसू चुरा लिया मैंने ।
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छिपा लिया मैंने ।

तमाम उम्र जो अपनी तलाश में भटका,
उसी से उसके शहर का पता लिया मैंने ।

कहूँगी आज भी क्या उससे अलविदा के सिवा,
न जाने फिर भी उसे क्यूँ बुला लिया मैंने ।

जो मेरी याद में भीगी नहीं नज़र उसकी,
किसी की आँख का आँसू बचा लिया मैंने ।

पुकार लूँ न कहीं बेख़ुदी के आलम में,
जहाँ के डर से ज़ुबां को कटा लिया मैंने ।

मेरा ही आइना पहचानता नहीं मुझको,
ये किसके चेहरे-सा चेहरा लगा लिया मैंने ।

गुलाम दिल के रहे दिल की बात ही मानी,
न रोशनी न धुआँ क्या जला लिया मैंने ।