भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारी गाथा / अर्जुनदेव चारण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


काया बांधने को लाये
कंगन-डोरे
मन को बांधने लाये
तुम्हारे लिय मोड़
हम
तुम्हें लेने को नहीं आये थे मां
लेने को आये
बेशकीमती दहेज
कपड़े लत्ते
एक जोड़ी जूतियां

तुम्हारी गाथा
मौड़ से लेकर जूतियों तलक
फैली हुई है।

अनुवाद :- कुन्दन माली