Last modified on 21 फ़रवरी 2011, at 11:21

तुम्हारी याद का आना / ब्रज श्रीवास्तव

हृदय में अजीब-सी
सिहरन होने लगती है
जैसे ही शुरू होता है
तुम्हारी याद का आना

मन कुलाँचे भरने लगता है
वहाँ नहीं रहता जहाँ था
उचकने लगती है एक उमंग

अक्ल की पौध उगते ही
बदल जाता है जल रेत में
प्यास निराशा के पानी में डूब जाती है

एक नदी की धारा की दिशा बदल दी जाती है
मन को पिलाना होता है
समझौते का पानी
एक अनुभव और दर्ज़ करता हूँ
जीवन की नोट बुक में