Last modified on 11 अगस्त 2014, at 20:00

तुम्हारी हंसी से धुली घाटियों में / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’

तुम्हारी हंसी से धुली घाटियों में
तिमिर के प्रलय का नया अर्थ होगा

अनल-सा लहकते हुए तरु-शिखा पर
किरण चल रही या चरण हैं तुम्हारे
सुना है, बहुत बार अनुभव किया है
सुरों में तुम्हें रात भू पर उतारे

तुम्हारी हंसी से धुले हुए पर्वतों के
धड़कते हृदय का नया अर्थ होगा

तुम्हारा कहीं एक कण देख पाया
तभी से निरंतर पयोनिधि सुलगता
कहीं एक क्षण पा गया है तुम्हारा
तभी से प्रभंजन अनिर्बन्ध लगता

तुम्हारी हंसी से धुली क्यारियों में
छलकते प्रणय का नया अर्थ होगा

अहो, तुम वही गीत जनमा नहीं जो
जिसे चूम पृथ्वी लजीली बनी है
अहो, तुम वही स्वर अकल्पित रहा जो
जिसे सांस पाकर सजीली बनी है

तुम्हारी हंसी से धुले रश्मि-पथ पर
चमकते उदय का नया अर्थ होगा।