http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87_%E0%A4%86%E0%A4%A8%E0%A5%87_%E0%A4%AD%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A5%87_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%A4_%27%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%AC%27&feed=atom&action=historyतुम्हारे आने भर से / अर्पित 'अदब' - अवतरण इतिहास2024-03-29T08:12:25Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87_%E0%A4%86%E0%A4%A8%E0%A5%87_%E0%A4%AD%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A5%87_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%A4_%27%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A4%AC%27&diff=242808&oldid=prevRahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्पित 'अदब' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2018-02-20T13:31:17Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्पित 'अदब' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्पित 'अदब'<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
कुछ अपनों कुछ सपनों के मुस्काने भर से हैं<br />
कितने सारे प्रश्न तुम्हारे आने भर से हैं<br />
<br />
तुम आयीं तो होंठों ने खुशियों का गाल छुआ<br />
तुम आयीं तो बातों ही बातों में हुई दुआ<br />
तुम आयीं तो बारिश के पानी में गंध उठी<br />
तुम आयीं तो कलियों का फूलों में बदल हुआ<br />
तुम आयीं तो लगता है जैसे की मन के भय<br />
मिलने की उत्सुकता में खो जाने भर से हैं<br />
कितने सारे प्रश्न तुम्हारे आने भर से हैं<br />
<br />
अपने पीछे दोहराने को यादें और करो<br />
कुछ पल को आये हो मुझ से बातें और करो<br />
आंखें गीली हो आयी हैं इन्द्रदेव सुन लो<br />
अब के सावन में तुम भी बरसातें और करो<br />
तुम बेहतर कर आयी हो अपने सारे मौसम<br />
हम अपनी ऋतुओं को ये समझाने भर से हैं<br />
कितने सारे प्रश्न तुम्हारे आने भर से हैं<br />
<br />
ऐसे पानी के भीतर आंखों का रूप दिखा<br />
तुम से मिलकर जैसे कोई खोया चांद मिला<br />
जैसे उठकर गीतों के सब राजकुमार कहें<br />
मन की पीड़ा पर अब के एक अच्छा गीत लिखा<br />
हम ने भी पूछा है हम से तुम भी तो पूछो<br />
इतने खुश क्या पीड़ाओं को पाने भर से हैं<br />
कितने सारे प्रश्न तुम्हारे आने भर से हैं<br />
</poem></div>Rahul Shivay