Last modified on 23 जून 2010, at 11:46

तुम्हारे नाम का जल / सुशीला पुरी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 23 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला पुरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> तुम्हारा नाम अप…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हारा नाम
अपने अर्थ की आभा में
चमकता है
जैसे अपने नमक के साथ
धीर धरे सागर हो

धैर्य की अटूट परम्परा में
तुम्हारे नाम का वजूद
समय के ठोस अँधेरे को भेदकर
रौशनी की तरह फैलता है
और मै कतरा-कतरा नहा उठती हूँ

तुम्हारे नाम की बारिश में
बिना छतरी के
मै भीगती हूँ नंगे पाँव
साइबेरियन पंछियों की तरह

तुम्हारे नाम का जल
क्यूँ बुलाता है मुझे बार बार
मै चली आती हूँ मीलों मील
बिना रुके बिना थके
तुम्हारे नाम का अर्थ
धारण किए
तुझमे विलीन होने को आतुर
मै सदानीरा ।