भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे साथ जो गुज़रे ज़माने याद आते हैं / देवेश दीक्षित 'देव'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे साथ जो गुज़रे, ज़माने याद आते हैं
मिलन के गीत,वो मौसम सुहाने याद आते हैं

कभी हँस-हँस के लिक्खे थे, कभी रो-रोके लिक्खे थे
तुम्हें भी क्या मिरे वो ख़त पुराने याद आते हैं

बरसते थे कभी मुझपर तुम्हारे प्यार के बादल
मुझे अब तक वो वारिश के ज़माने याद आते हैं

उतर आता है कोई झुण्ड जब चिड़ियों का आँगन में
गईं ससुराल बहनों के तराने याद आते हैं

हमारे मुल्क़ की ज़ानिब वो कैसे देख सकता है
जिसे अब्दुल औ बाँसठ के फ़साने याद आते हैं