तुम्हारे सीने में दिल के जैसा जो एक पत्थर धड़क रहा है / नासिर परवेज़
तुम्हारे सीने में दिल के जैसा जो एक पत्थर धड़क रहा है
वो एक पत्थर न जाने कितने दिलों का मरकज़ बना हुआ है
ये चान्द से भी हसीन तर है जो चान्द जैसा चमक रहा है
फ़िराक़ की शब में आसमां पर तुम्हारा चेहरा टंगा हुआ है
दिल-ए-शिकस्ता के हौसलों ने हर एक मन्ज़िल को सर किया है
तुम्हारे दर तक तो आन पोहंचे पर इस से आगे भी रास्ता है
सड़क पे बैठे हुए क़लन्दर के सर पड़े हैं सवाल कितने
ज़माना उस से जो पूछता है वो उसने मुझको बता दिया है
तुम्हारी महफ़िल में आने वाले इन्हीं मुहब्बत के दुश्मनों ने
तुम्हारा मेरा जो वाक़िआ था उसे फ़साना बना रखा है
ख़ुलूस-ए-यारां की क़द्र लेकिन ख़ुलूस के यारां का फ़ाइदा क्या
मैं इन दिलासों का क्या करूँगा के दर्द मेरा बोहत बड़ा है
तुम्हारी यादों के चढ़ते दरिया को ख़ुश्कसाली से क्या तअल्लुक़
तुम्हारी यादों का चढ़ता दरिया हर एक मौसम में बह रहा है